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इ॒यं ते॑ पूषन्नाघृणे सुष्टु॒तिर्दे॑व॒ नव्य॑सी। अ॒स्माभि॒स्तुभ्यं॑ शस्यते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iyaṁ te pūṣann āghṛṇe suṣṭutir deva navyasī | asmābhis tubhyaṁ śasyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒यम्। ते॒। पू॒ष॒न्। आ॒घृ॒णे॒। सु॒ऽस्तु॒तिः। दे॒व॒। नव्य॑सी। अ॒स्माभिः॑। तुभ्य॑म्। श॒स्य॒ते॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में विद्वान् के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले (आघृणे) सब प्रकार प्रकाशित (देव) उत्तमगुणों से युक्त विद्वान् पुरुष वा राजन् ! (ते) आपकी जो (इयम्) यह (नव्यसी) अत्यन्त नवीन (सुष्टुतिः) उत्तम प्रशंसा वर्त्तमान है वह (तुभ्यम्) आपके लिये (अस्माभिः) हम लोगों से (शस्यते) उच्चारण की जाती है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्मसम्बन्धी कर्मों के करने से यशस्वी हैं, उनको सुन और देख के सब लोग प्रसन्न होओ ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे पूषन्नाघृणे देव विद्वन् राजन् वा ते येयं नव्यसी सुष्टुतिर्वर्तते सा तुभ्यमस्माभिः शस्यते ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) (ते) तव (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (आघृणे) समन्तात् प्रकाशितः (सुष्टुतिः) शोभना प्रशंसा (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (नव्यसी) अतिशयेन नवीना (अस्माभिः) (तुभ्यम्) (शस्यते) ॥७॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धर्म्यकर्माऽनुष्ठानेन कीर्त्तिमन्तो भवेयुस्ताञ्छ्रुत्वा दृष्ट्वा सर्वे प्रसन्ना भवन्तु ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धर्म कर्म करून कीर्तिमान होतात ते ऐकून व पाहून सर्व लोक प्रसन्न होतात. ॥ ७ ॥